One Nation, One Election कब से होगा लागू ? रामनाथ कोविंद समिति ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर राष्ट्रपति को सौंपी रिपोर्ट।

       लोकसभा, ​विधानसभा और पंचायत चुनाव एक साथ कराने की संभावनाओं को लेकर बनी पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी है। कोविंद पैनल ने सिफारिश की है कि पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं उसके बाद दूसरे चरण में 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जा सकते हैं। 18,626 पेजों की इस रिपोर्ट के लिए 2 सितंबर 2023 को एक समिति का गठन किया गया था, जिसने 191 दिनों तक एक्सपर्ट के साथ चर्चा करने के बाद रिपोर्ट जमा की है।

 

 

रिपोर्ट में दी गई यह सलाह।

  • सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए।
  • हंग हाउस, नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं।
  • पहले फेज में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एकसाथ कराए जा सकते हैं, उसके बाद दूसरे फेज में 100 दिनों के भीतर लोकल बॉडी के इलेक्शन कराए जा सकते हैं।
  • चुनाव आयोग लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आई कार्ड तैयार करेगा।
  • कोविंद पैनल ने एकसाथ चुनाव कराने के लिए उपकरणों, जनशक्ति और सुरक्षा बलों की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश की है।

पहले एक साथ ही होते थे चुनाव।

      बता दें कि एक देश-एक चुनाव का सीधा सा मतलब है कि देश में होने वाले सारे चुनाव एक साथ करा लिए जाएं। दरअसल, आजादी के बाद बाद कुछ सालों तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ ही होते थे। लेकिन बाद में समय से पहले विधानसभा भंग होने और सरकार गिरने के कारण ये परंपरा टूट गई ।  

विश्व के कई देशों ने चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए ‘एक देश, एक चुनाव’ के मॉडल की विविधताओं को अपनाया है।

 ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का विचार पहली बार 1980 के दशक में प्रस्तावित किया गया था जहां चुनाव आयोग ने 1983 में सुझाव दिया था कि ऐसी सिस्टम विकसित की जानी चाहिए कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हो सकें।

 एक साथ चुनाव के लाभ

   विधि आयोग के अनुसार, एक साथ चुनाव कराने के कई फायदे हैं। जैसे कि

  • जनता का पैसा बचाएं- यह बार-बार होने वाले चुनावों में लगने वाले भारी खर्च को कम करेगा।
  • प्रशासनिक ढांचे और सुरक्षा बलों पर बोझ कम करें- यह उस भारी जनशक्ति को कम करेगा जिसे हर बार चुनाव होने पर तैनात करना पड़ता है।
  • सरकारी नीतियों का समय पर कार्यान्वयन सुनिश्चित करें- साथ-साथ चुनाव सुनिश्चित करेंगे कि सत्तारूढ़ पार्टी लगातार चुनाव मोड में रहने के बजाय विकास पर ध्यान केंद्रित करे।
  • चूंकि आदर्श आचार संहिता बार-बार लागू नहीं होगी, इसलिए सरकारें समयबद्ध तरीके से नीतियों और कार्यक्रमों को लॉन्च करने में सक्षम होंगी। यह नीति की निरंतरता भी सुनिश्चित करेगा।
  • यह सुनिश्चित करेगा कि प्रशासनिक मशीनरी चुनाव प्रचार के बजाय विकास गतिविधियों में लगी रहे- यह शिक्षकों को छुट्टियों के डर के बिना काम करने में मदद करेगी। स्कूल और विश्वविद्यालय भी समय पर खुल सकेंगे।
  • विधि आयोग के अनुसार एक साथ चुनाव कराने से मतदान प्रतिशत भी बढ़ेगा।
  • एक साथ चुनाव वोट बैंक तुष्टिकरण की राजनीति के खिलाफ भी काम कर सकते हैं।

एक देश-एक चुनाव की चुनौतियां।

  • लोकसभा का कार्यकाल पांच वर्षों का होता है, लेकिन इसे उससे पहले भी भंग किया जा सकता है। ऐसे में एक देश-एक चुनाव संभव नहीं होगा।
  • लोकसभा की तरह ठीक विधानसभा का भी कार्यकाल पांच साल का होता है और ये भी पांच साल से पहले भंग हो सकता है। अब ऐसे में सरकार के सामने चुनौती होगी कि एक देश-एक चुनाव का क्रम कैसे बरकरार रखा जाए।
  • एक देश-एक चुनाव पर देश के सभी दलों को एक साथ लाना सबसे बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि इस पर सभी पार्टियों के अलग-अलग मत हैं।
  • ऐसा माना जाता है कि एक देश-एक चुनाव से राष्ट्रीय पार्टी को फायदा पहुंचेगा, लेकिन क्षेत्रीय पार्टियों को इसका खामियाजा भुगतना होगा। यानी कि उन्हें नुकसान पहुंचेगा।
  • फिलहाल देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग होते हैं, जिस वजह से ईवीएम और वीवीपैट की सीमित संख्या हैं, लेकिन अगर एक देश-एक चुनाव होते हैं तो एक साथ इन मशीनों की अधिक मांग होगी, जिसे पूर्ति करना बड़ी चुनौती होगी।
  • अगर एक साथ चुनाव कराए जाते हैं, तो अतिरिक्त अधिकारियों और सुरक्षाबलों की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में ये भी एक बड़ी चुनौती होंगी।

 रिपोर्ट पर आगे क्या होगा ?

    रिपोर्ट लोकसभा चुनाव के बाद कैबिनेट के सामने रखी जाएगी। कैबिनेट के फैसले के अनुरूप कानून मंत्रालय संविधान में वह नए खंड जोड़ेगा, जिसकी सिफारिश विधि आयोग ने की है, ताकि चुनाव एकसाथ हो सकें। इसे संसद के दोनों सदनों में पारित कराया जाएगा और राज्य विधानसभाओं से भी प्रस्ताव पारित करने की सिफारिश की जाएगी। इसके बाद तीन चरणों में 2029 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ सुनिश्चित किए जा सकेंगे।

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